tag:blogger.com,1999:blog-623234718557333912024-03-08T14:05:14.956-08:00घरौंदाहरि अटलhttp://www.blogger.com/profile/10983125495550671182noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-62323471855733391.post-23027680016814507542013-01-03T21:13:00.000-08:002013-01-04T03:55:31.351-08:00मेरे दिल के मीत हो तुम।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मेरे दिल के मीत हो तुम।<br />
गुलाबी मौसम में दिल से <br />
निकला गीत हो तुम।<br />
पूर्णिमा के चांद की चांदनी<br />
और सर्दियों में गुनगुनी धुप की <br />
तपिश हो तुम। <br />
<br />
<br />
हर पल जिसको अपने विचारों में पाउं,<br />
और खुली आंखों से जिस ख्वाब को देखूं,<br />
वो ख्वाब हो तुम। <br />
काली घटाओं को देख,<br />
जंगल में नाचता मोर हो तुम,<br />
जिसने मेरा चैन चुराया, <br />
वेा चितचोर हो तुम। <br />
<br />
<br />
बर्फीले पहाड़ों की सफेदी,<br />
घने जंगलों की हरियाली,<br />
झरने का शोर हो तुम,<br />
बसंती मौसम की रूमानियत,<br />
डूबते सूरज की लाली हो तुम।<br />
<br />
<br />
यूं तो तुम कहीं नहीं हो,<br />
सिवाय मेरे विचारों के,<br />
पर जिस घने वृक्ष की छाया तले,<br />
मैं सुकुन से सुघबुध खो बैठूं,<br />
वो छाया हो तुम। </div>
हरि अटलhttp://www.blogger.com/profile/10983125495550671182noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-62323471855733391.post-77052018828671758252012-01-11T02:14:00.000-08:002012-01-11T02:14:27.678-08:00मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?<br />खुद से कहीं ज्यादा, तुझमें खो गया हूं।<br />चेहरे पर मुस्कान और दिल में जख्म लिये,<br />फिरता हूं गली-गली, होंठों में नग्मे लिये, <br />खाना-पीना-सोना, सब जैसे भूल ,<br />तेरे बिना इस भीड़ में तनहा रह गया हूं । <br />
<br />
<br />
मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?<br />खुद से कहीं ज्यादा, तुझमें खो गया हूं।<br />
<br />
<br />
अब तो अपने बारे में कम, <br />तेरे बारे में ज्यादा सोंचता हूं।<br />तेरा खयाल, तुझसे कहीं ज्यादा रखता हूं <br />पर कभी-कभी लगता है, <br />तेरे लिये अनुपयोगी सा हो गया हंू।<br />
<br />
<br />
मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?<br />खुद से कहीं ज्यादा, तुझमें खो गया हूं।<br />
<br />
<br />
तुम कहती हो कि,<br />अपने नहीं, <br />दुनिया के अनुसार चलना पड़ता है,<br />समाज के रस्मो-रिवाज के मुताबिक<br />इस संसार में ढलना पड़ता है। <br />पर मैं सोंचता हूं,<br />तू दुनिया के अनुसार चल,<br />मैं तेरे अनुरूप ढलने का प्रयास करता हूं। <br />मेरे लिये तो तू ही दुनिया, तू ही रस्मो-रिवाज की किताब,<br />तेरी बंदिगी करते मैं तुझ पर निशां हो गया हूं । <br />
<br />
<br />
मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?<br />खुद से कहीं ज्यादा, तुझमें खो गया हूं।</div>हरि अटलhttp://www.blogger.com/profile/10983125495550671182noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-62323471855733391.post-16208942661696794562011-11-30T03:44:00.000-08:002011-11-30T03:44:25.600-08:00तुमसे मिलकर ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><strong><span style="color: #e06666;">तुमसे मिलकर</span></strong> ...<br />
<span style="color: blue;">जुबां खामोश थी, <br />
मन फिर भी तुमसे<br />
बहुत कुछ बोल रहा था </span><br />
<span style="color: blue;">ए कैसा मंजर था, <br />
मैं हर तरफ तुम्हें <br />
ही देख रहा था। </span><br />
<br />
<br />
<span style="color: blue;">ना जाने कितने शिकवे थे, <br />
ना जाने कितने अरमां थे<br />
सामने जब तुम मिले,<br />
बरफ के मानिंद मैं तो,<br />
बस पिघल रहा था।</span><br />
<br />
<br />
<span style="color: blue;">तुमसे मिलकर हुआ, <br />
तन-मन इतना हल्का,<br />
कि मैं बादलों के संग,<br />
उड़ रहा था<br />
उस दिन फिजां में ना जाने,<br />
ये कैसा नशा था। </span><br />
<br />
<br />
<span style="color: blue;">ऐ रहबर थोड़ी सी,<br />
तो मोहलत दे देता <br />
मैं इन मृगनयनी आंखों में,<br />
थोड़ी देर के लिये उतर जाता। </span><br />
<br />
<br />
<span style="color: blue;">विरह के इस मरूस्थल में, <br />
भटका हुआ,<br />
बरसों से प्यासा था.</span><br />
<span style="color: blue;">ये मन <br />
वो आये पल भर में <br />
और मुस्कुरा के चल दिये</span><br />
<span style="color: blue;">अटल कैसे कहे कि <br />
ऐ <strong><span style="background-color: red; color: white;">मेरी जिंदगी</span>,</strong> मै<br />
तुमसे थोड़ा और रूबरू <br />
होना चाह रहा था......! </span></div>हरि अटलhttp://www.blogger.com/profile/10983125495550671182noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-62323471855733391.post-54776028538935722142011-11-09T02:12:00.000-08:002011-11-30T03:53:05.298-08:00मुझे पसंद है....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मुझे वो तन्हाई <br />
पसंद है,<br />
जिसमें गूंजती तेरी सुरीली आवाज,<br />
मेरे रोम-रोम को स्पंदित कर देती हो। <br />
<br />
मुझे वो अंधेरा पसंद है,<br />
जिसमें तेरा दमकता चेहरा,<br />
मेरे मन के तारों को झंकृत कर,<br />
मेरे हृदय को आलोकित कर देता हो। <br />
<br />
मुझे वो हर चीज,<br />
पसंद है।<br />
जिस काम में बस,<br />
तू और तेरा नाम जुड़ा हो। <br />
<br />
हां! मुझे पसंद है,<br />
तुम्हे जुनून की हद तक,<br />
याद करना और तेरी यादों में,<br />
खोया रहना। <br />
भले ही तुम मुझे जमाने के संग, <br />
यूं ही पागल समझती रहो। <br />
<br />
<br />
<br />
हरि अटल </div>हरि अटलhttp://www.blogger.com/profile/10983125495550671182noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-62323471855733391.post-77865271793481962762011-10-25T00:31:00.000-07:002011-10-25T00:31:44.947-07:00इंतजार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बस हिस्सा सा बन कर रह गया हूं,<br />
शहर में इस भीड़ का। <br />
हमेशा डर सा बना रहता है, <br />
खो जाने की अपनी पहचान का। <br />
मलाल सा बना रहता है,<br />
हमेशा दिल में,<br />
तेरे सामने, व्यक्त नहीं कर पाने का <br />
अपनी बात। <br />
<br />
<br />
मैने कब कहा था?<br />
कि सुने सब मेरी आरजू, <br />
मुझे तो बस एक मीत चाहिये था।<br />
जो जानता हो पता इस शहर में आपका। <br />
<br />
<br />
जानता हूं, कोई नफा नहीं । <br />
इस नामुरादे जुनुन का । <br />
सब कहते हैं कि <br />
गाड़ी कब की गुजर गयी है। <br />
मै फिर भी तख्ती लिये,<br />
स्टेशन में खड़ा हूं,<br />
नाम लिखा है जिसमें आपका। </div>हरि अटलhttp://www.blogger.com/profile/10983125495550671182noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-62323471855733391.post-78956765760788195322011-10-10T23:09:00.000-07:002011-10-12T02:49:04.345-07:00बस इतना सा उपकार कर देना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">अपनी सारी खुशियंा बांट देना उन्हे, <br />
जिन्हे तुम चाहो <br />
मेरे लिये, <br />
बस गमों को छोड़ देना । <br />
याचक बनकर आउंगा, <br />
तुम्हारी दहलीज पर। <br />
तुम अपने गमों से, <br />
मेरी खुशियों की झोली भर देना। <br />
मैं अपनी दुआओं में अपनी हंसी, <br />
तुम्हे अर्पण कर दूंगा। <br />
<br />
बस इतना सा उपकार कर देना । <br />
<br />
<br />
अपनी मांग में सिंदूर,तुम बेशक सजा लेना,<br />
किसी और के नाम का <br />
मुझे बस बिछुआ के नाम पर, <br />
पैरों में जगह दे देना। <br />
मैं तुम्हारी राह के कांटों को, <br />
अपने सीने में सहन कर,<br />
बस फूल-कलियां तुम्हे अर्पण कर दूंगा। <br />
<br />
बस इतना सा उपकार कर देना । <br />
<br />
<br />
<br />
अपनी बहारों में शामिल कर लेना, <br />
बेशक तुम किसी और को <br />
मेरे लिये बस पतझड़ का मौसम छोड़ देना,<br />
जब सारे फूल-पत्ते साथ छोड़ दें,<br />
तब मुझे याद करना, <br />
मैं आकर अपना बसंत तुम्हे अर्पण कर दूंगा। <br />
<br />
बस इतना सा उपकार कर देना । <br />
<br />
</div>हरि अटलhttp://www.blogger.com/profile/10983125495550671182noreply@blogger.com18