मुझे वो तन्हाई
पसंद है,
जिसमें गूंजती तेरी सुरीली आवाज,
मेरे रोम-रोम को स्पंदित कर देती हो।
मुझे वो अंधेरा पसंद है,
जिसमें तेरा दमकता चेहरा,
मेरे मन के तारों को झंकृत कर,
मेरे हृदय को आलोकित कर देता हो।
मुझे वो हर चीज,
पसंद है।
जिस काम में बस,
तू और तेरा नाम जुड़ा हो।
हां! मुझे पसंद है,
तुम्हे जुनून की हद तक,
याद करना और तेरी यादों में,
खोया रहना।
भले ही तुम मुझे जमाने के संग,
यूं ही पागल समझती रहो।
हरि अटल
इस खूबसूरत और भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
बहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
bahut sundar
ReplyDeletemere blog pe aapka swagat hai...
mymaahi.blogspot.com
बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeletesundar prastuti...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
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