मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?
खुद से कहीं ज्यादा, तुझमें खो गया हूं।
चेहरे पर मुस्कान और दिल में जख्म लिये,
फिरता हूं गली-गली, होंठों में नग्मे लिये,
खाना-पीना-सोना, सब जैसे भूल ,
तेरे बिना इस भीड़ में तनहा रह गया हूं ।
मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?
खुद से कहीं ज्यादा, तुझमें खो गया हूं।
अब तो अपने बारे में कम,
तेरे बारे में ज्यादा सोंचता हूं।
तेरा खयाल, तुझसे कहीं ज्यादा रखता हूं
पर कभी-कभी लगता है,
तेरे लिये अनुपयोगी सा हो गया हंू।
मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?
खुद से कहीं ज्यादा, तुझमें खो गया हूं।
तुम कहती हो कि,
अपने नहीं,
दुनिया के अनुसार चलना पड़ता है,
समाज के रस्मो-रिवाज के मुताबिक
इस संसार में ढलना पड़ता है।
पर मैं सोंचता हूं,
तू दुनिया के अनुसार चल,
मैं तेरे अनुरूप ढलने का प्रयास करता हूं।
मेरे लिये तो तू ही दुनिया, तू ही रस्मो-रिवाज की किताब,
तेरी बंदिगी करते मैं तुझ पर निशां हो गया हूं ।
मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?
खुद से कहीं ज्यादा, तुझमें खो गया हूं।
खुद से कहीं ज्यादा, तुझमें खो गया हूं।
चेहरे पर मुस्कान और दिल में जख्म लिये,
फिरता हूं गली-गली, होंठों में नग्मे लिये,
खाना-पीना-सोना, सब जैसे भूल ,
तेरे बिना इस भीड़ में तनहा रह गया हूं ।
मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?
खुद से कहीं ज्यादा, तुझमें खो गया हूं।
अब तो अपने बारे में कम,
तेरे बारे में ज्यादा सोंचता हूं।
तेरा खयाल, तुझसे कहीं ज्यादा रखता हूं
पर कभी-कभी लगता है,
तेरे लिये अनुपयोगी सा हो गया हंू।
मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?
खुद से कहीं ज्यादा, तुझमें खो गया हूं।
तुम कहती हो कि,
अपने नहीं,
दुनिया के अनुसार चलना पड़ता है,
समाज के रस्मो-रिवाज के मुताबिक
इस संसार में ढलना पड़ता है।
पर मैं सोंचता हूं,
तू दुनिया के अनुसार चल,
मैं तेरे अनुरूप ढलने का प्रयास करता हूं।
मेरे लिये तो तू ही दुनिया, तू ही रस्मो-रिवाज की किताब,
तेरी बंदिगी करते मैं तुझ पर निशां हो गया हूं ।
मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?
खुद से कहीं ज्यादा, तुझमें खो गया हूं।
बेहतरीन रचना...बधाई स्वीकारें .
ReplyDeleteनीरज
कल 17/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
पर कभी-कभी लगता है,
ReplyDeleteतेरे लिये अनुपयोगी सा हो गया हंू। bahut achcha.
Wah!!! Behtareen.... Bahut khoob....
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteमेरे लिये तो तू ही दुनिया, तू ही रस्मो-रिवाज की किताब,
तेरी बंदिगी करते मैं तुझ पर निशां हो गया हूं ।
बहुत सुन्दर...
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteमेरे ख्याल से यदि पहली पंक्ति में 'ऐसे' की जगह 'मैं ऐसा कैसे हो गया हूं' हो, तो बेहतर होगा। कृपया अन्यथा न लें, बस अपनी राय रख रही थी। वैसे भाव बहुत सुंदर हैं।
ReplyDeleteमैं ऐसा क्योँ हूँ ??
ReplyDeleteकिसी हिन्दी फिल्म के गाने की पंक्तियाँ कानो में बज रही हैं
ऐसा क्योँ हैं ??
बहुत उम्दा . आपकी रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद शुभकामनायें
सुन्दर प्रस्तुति ..
ReplyDeletebehtarin sundar prastuti...
ReplyDelete