Thursday, 3 January 2013

मेरे दिल के मीत हो तुम।

मेरे दिल के मीत हो तुम।
गुलाबी मौसम में दिल से
निकला गीत हो तुम।
पूर्णिमा के चांद की चांदनी
और सर्दियों में गुनगुनी धुप की
तपिश हो तुम।


हर पल जिसको अपने विचारों में पाउं,
और खुली आंखों से जिस ख्वाब को देखूं,
वो ख्वाब हो तुम।
काली घटाओं को देख,
जंगल में नाचता मोर हो तुम,
जिसने मेरा चैन चुराया,
वेा चितचोर हो तुम।


बर्फीले पहाड़ों की सफेदी,
घने जंगलों की हरियाली,
झरने का शोर हो तुम,
बसंती मौसम की रूमानियत,
डूबते सूरज की लाली हो तुम।


यूं तो तुम कहीं नहीं हो,
सिवाय मेरे विचारों के,
पर जिस घने वृक्ष की छाया तले,
मैं सुकुन से सुघबुध खो बैठूं,
वो छाया हो तुम।

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