Wednesday 11 January 2012

मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?

मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?
खुद से कहीं ज्यादा, तुझमें खो गया हूं।
चेहरे पर मुस्कान और दिल में जख्म लिये,
फिरता हूं गली-गली, होंठों में नग्मे लिये,
खाना-पीना-सोना, सब जैसे भूल ,
तेरे बिना इस भीड़ में तनहा रह गया हूं ।    


मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?
खुद से कहीं ज्यादा, तुझमें खो गया हूं।


अब तो अपने बारे में कम,
तेरे बारे में ज्यादा सोंचता हूं।
तेरा खयाल, तुझसे कहीं ज्यादा रखता हूं
पर कभी-कभी लगता है,
तेरे लिये  अनुपयोगी सा हो गया हंू।


मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?
खुद से कहीं ज्यादा, तुझमें खो गया हूं।


तुम कहती हो कि,
अपने नहीं,
दुनिया के अनुसार चलना पड़ता है,
समाज के रस्मो-रिवाज के मुताबिक
इस संसार में ढलना पड़ता है।
पर मैं सोंचता हूं,
तू दुनिया के अनुसार चल,
मैं तेरे अनुरूप ढलने का प्रयास करता हूं।
मेरे लिये तो तू ही दुनिया, तू ही रस्मो-रिवाज की किताब,
तेरी बंदिगी करते मैं तुझ पर निशां  हो गया हूं ।


मैं ऐसे कैसे हो गया हूं, ?
खुद से कहीं ज्यादा, तुझमें खो गया हूं।