Wednesday 30 November 2011

तुमसे मिलकर ...

तुमसे मिलकर ...
जुबां खामोश थी,
मन फिर भी तुमसे
बहुत कुछ बोल रहा था

ए कैसा मंजर था,
मैं हर तरफ तुम्हें
ही देख रहा था।



ना जाने कितने शिकवे थे,
ना जाने कितने अरमां थे
सामने जब तुम मिले,
बरफ के मानिंद मैं तो,
बस पिघल रहा था।



तुमसे मिलकर हुआ,
तन-मन इतना हल्का,
कि मैं बादलों के संग,
उड़ रहा था
उस दिन फिजां में ना जाने,
ये कैसा नशा था।



ऐ रहबर थोड़ी सी,
तो मोहलत दे देता
मैं इन मृगनयनी आंखों में,
थोड़ी देर के लिये उतर जाता।



विरह के इस मरूस्थल में,
भटका हुआ,
बरसों से प्यासा था.

ये मन 
वो आये पल भर में
और मुस्कुरा के चल दिये

अटल कैसे कहे कि
मेरी जिंदगी, मै
तुमसे थोड़ा और रूबरू
होना चाह रहा था......!

Wednesday 9 November 2011

मुझे पसंद है....


मुझे वो तन्हाई
पसंद है,
जिसमें गूंजती तेरी सुरीली आवाज,
मेरे रोम-रोम को स्पंदित कर देती हो। 

मुझे वो अंधेरा पसंद है,
जिसमें तेरा दमकता चेहरा,
मेरे मन के तारों को झंकृत कर,
मेरे हृदय को आलोकित कर देता हो।

मुझे वो हर चीज,
पसंद है।
जिस काम में बस,
तू और तेरा नाम जुड़ा हो।

हां! मुझे पसंद है,
तुम्हे जुनून की हद तक,
याद करना और तेरी यादों में,
खोया रहना।
भले ही तुम मुझे जमाने के संग,
यूं ही पागल समझती रहो।



हरि अटल

Tuesday 25 October 2011

इंतजार


बस हिस्सा सा बन कर रह गया हूं,
शहर में इस भीड़ का।
हमेशा डर सा बना रहता है,
खो जाने की अपनी पहचान का।
मलाल सा बना रहता है,
हमेशा दिल में,
तेरे सामने, व्यक्त नहीं कर पाने का
अपनी बात।


मैने कब कहा था?
कि सुने सब मेरी आरजू,
मुझे तो बस एक मीत चाहिये था।
जो जानता हो पता इस शहर  में आपका।


जानता हूं, कोई नफा नहीं ।
इस नामुरादे जुनुन का ।
सब कहते हैं कि
गाड़ी कब की गुजर गयी है।
मै फिर भी तख्ती लिये,
स्टेशन में खड़ा हूं,
नाम लिखा है जिसमें आपका।

Monday 10 October 2011

बस इतना सा उपकार कर देना

अपनी सारी खुशियंा बांट देना उन्हे,
जिन्हे तुम चाहो
मेरे लिये,
बस गमों को छोड़ देना ।
याचक बनकर आउंगा,
तुम्हारी दहलीज पर।
तुम अपने गमों से,
मेरी खुशियों की झोली भर देना।
मैं अपनी दुआओं में अपनी हंसी,
तुम्हे अर्पण कर दूंगा।

बस इतना सा उपकार कर देना ।


अपनी मांग में सिंदूर,तुम बेशक सजा लेना,
किसी और के नाम का
मुझे बस बिछुआ के नाम पर,
पैरों में जगह  दे देना।
मैं तुम्हारी राह के कांटों को,
अपने सीने में सहन कर,
बस फूल-कलियां तुम्हे अर्पण कर दूंगा।

बस इतना सा उपकार कर देना ।



अपनी बहारों में शामिल कर लेना,
बेशक तुम किसी और को
मेरे लिये बस पतझड़ का मौसम छोड़ देना,
जब सारे फूल-पत्ते साथ छोड़ दें,
तब मुझे याद करना,
मैं आकर अपना बसंत तुम्हे अर्पण कर दूंगा।

बस इतना सा उपकार कर देना ।