बस हिस्सा सा बन कर रह गया हूं,
शहर में इस भीड़ का।
हमेशा डर सा बना रहता है,
खो जाने की अपनी पहचान का।
मलाल सा बना रहता है,
हमेशा दिल में,
तेरे सामने, व्यक्त नहीं कर पाने का
अपनी बात।
मैने कब कहा था?
कि सुने सब मेरी आरजू,
मुझे तो बस एक मीत चाहिये था।
जो जानता हो पता इस शहर में आपका।
जानता हूं, कोई नफा नहीं ।
इस नामुरादे जुनुन का ।
सब कहते हैं कि
गाड़ी कब की गुजर गयी है।
मै फिर भी तख्ती लिये,
स्टेशन में खड़ा हूं,
नाम लिखा है जिसमें आपका।